लालजी टंडन आखिर क्यों थे अटलजी के खास और कैसे बने मायावती के भाई

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मध्य प्रदेश के राज्यपाल लालजी टंडन का मंगलवार सुबह लखनऊ के एक अस्पताल में निधन हो गया. लालजी टंडन के निधन के बाद राजनीतिक जगत में शोक की लहर है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, यूपी और एमपी के सीएम सहित बीजेपी और बाकी दलों के तमाम दिग्गज नेताओं ने उन्हें याद किया और संवेदनाएं जताई है.

पार्षद बनने से शुरू लालजी टंडन के राजनीतिक करियर में बिहार और मध्य प्रदेश के राज्यपाल बनने तक कई पड़ाव आए.लखनऊ में पूर्व प्रधानमंत्री भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी की विरासत संभालने वाले टंडन को बीएसपी प्रमुख मायावती भी अपना बड़ा भाई मानती रही हैं. आइए जानते हैं कि इन दोनों ही रिश्ते की सबसे बड़ी वजह क्या रही. साथ ही लालजी टंडन के राजनीतिक जीवन का सबसे मुश्किल वक्त कब आया और लखनऊ के नाम को लेकर उन्होंने सुर्खियों के लायक क्या लिखा है?

अटलजी से पक्के जुड़ाव की दो बड़ी वजह

पहली वजह – 12 अप्रैल, 1935 को जन्मे लालजी टंडन के अटलजी के करीबी होने की सबसे बडी वजह उनका बचपन में ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ना था. लालजी टंडन खुद कहते थे कि अटल बिहारी वाजपेयी ने राजनीति में उनके साथी, भाई और पिता तीनों की भूमिका निभाई. साल 1960 से शुरू सियासी करियर में वह दो बार सभासद चुने गए. दो बार विधान परिषद के सदस्य बने. मंत्री भी रहे. एक बार सांसद बने और दो राज्यों के राज्यपाल रहे.

दूसरी वजह- इंदिरा गांधी की सरकार के लगाए आपातकाल के खिलाफ जेपी आंदोलन में भी वह अटलजी के साथ सक्रिय रहे. यह अटलजी के साथ उनके पक्के जुड़ाव की दूसरी वजह बनी. बाद में साल 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के बाद लखनऊ की लोकसभा सीट खाली हुई तो लालजी टंडन वहां से लड़े और जीते. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक टंडन चुनाव प्रचार में कहते थे कि वह अटलजी का खड़ाऊं लेकर चुनाव लड़ रहे हैं.

मायावती से भाई के रिश्ते के पीछे की वजह

उत्तर प्रदेश की राजनीति में कहा जाता है कि बहुजन समाजवादी पार्टी प्रमुख मायावती लालजी टंडन को अपना बड़ा भाई मानकर राखी बांधती रही हैं. इसके पीछे गेस्ट हाउस कांड में मायावती की जान बचाने में उनकी भूमिका की चर्चा भी होती है. बताया जाता है कि 90 के दशक में उत्तर प्रदेश में बनी बीजेपी और बीएसपी की सरकार में उनका अहम रोल था. मायावती ने लालजी टंडन की बात मानकर बीजेपी से गठबंधन किया था. जब 2003 में बीजेपी और बसपा का गठबंधन टूटा तो मायावती ने लालजी टंडन को राखी बांधना छोड़ दिया.

राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी मुसीबत

साल 2004 में लोकसभा चुनाव की पूर्व संध्या और अपने जन्मदिन पर लालजी टंडन ने सार्वजनिक जीवन का सबसे बड़ी मुसीबत का सामना किया था. महिलाओं को साड़ी बांटने के दौरान अचानक भगदड़ मच गई. इस घटना में 21 महिलाओं की मौत हो गई. मामले ने राजनीतिक तूल पकड़ा. एफआईआर और चुनाव आयोग के कमेंट्स का सामना करना मुश्किल रहा. हांलाकि वह इन सबसे जल्दी ही उबर गए.

लखनऊ के पौराणिक नाम पर बटोरी बड़ी चर्चा

लालजी टंडन के साथ एक बड़ी घटना लखनऊ के पौराणिक नाम को लेकर छेड़ी गई उनकी चर्चा भी रही है. अपनी किताब ‘अनकहा लखनऊ’ में उन्होंने लिखा है कि पुराना लखनऊ लक्ष्मण टीले के पास बसा है. लक्ष्मण टीले को पूरी तरह मिटा दिया गया और उस जगह को टीले वाली मस्जिद को नाम से जाना जाता है. यह लखनऊ की प्राचीन संस्कृति के साथ जबरदस्ती की गई है.

अपने राजनीतिक सफरनामे के अलावा उस किताब में उन्होंने लिखा कि नबाबी कल्चर की वजह से लखनऊ के पौराणिक इतिहास पर पर्दा पड़ा है. लक्ष्मण टीले के पास शेष गुफा में मेला लगा करता था. खिलजी के समय पहली बार गुफा ध्वस्त की गई. इसके बाद यहां बार-बार चोट पहुंचाई गई और औरंगजेब के वक्त वहां मस्जिद बनाई गई थी. टंडन के इस खुलासे ने भी बड़ी सुर्खियां बटोरी थी.

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